जब वो वक़्त खुद मेरे सामने से गुज़र
रहा था तब कभी सोचा नहीं था जिसे आज सिर्फ
मैं..इसे यहीं छोड़ते हैं, पता नहीं क्या कौंधा था..
तब कभी नहीं सोचा था की तुम्हे अपने पास इतना महसूस करूँगा. यह शायद आज का सच है वो शायद तब का रहा होगा.
तब हमारे पास एक-दूसरे को देख भर लेने के कई सारे - तुम न भी मानो तो कम से कम मेरे लिए तो थे ही - और आज इसकी कोई संभावना भी नहीं दिखती. फिर भी एक रूमानी से गलियारे में तुम्हारे न होने पर चले जाना और उस खालीपने को भर लेने की ज़िद जहाँ अटक-भटक सा रहा हूँ..
बातचीत..ये होती क्या है..हमारे सन्दर्भ में बार-बार उस बार से दोहराना अपने आप में कम पीड़ादायक नहीं है पर हर बार बार-बार किसी ऐसे सच के पास पहुँच चीजों को साफ़ कर लेना चाहता हूँ जिससे मैं खुद को तय्यार कर सकूँ..
कि हाँ यही वो वजह है जिसके कारन हम दोनों आज साथ नहीं हैं. और रह-रह वो सारी दलीलें-तकरीरें चुक जाती हैं जिन पर पिछली बार मान चुका था. और यहीं कहीं मैं तुम्हारे पास चला आता हूँ.
पता नहीं तुम्हारा साथ मेरे न होना मेरे ऐसे होने
का कारण है या नहीं पर अपने ऐसे होने के इर्द-गिर्द सब भटकता सा रहता है.
उस दिन बोल सकना ही मेरे
लिए मेरी
होने के एकदम उलट सा कुछ था फिर आँखों के सामने तुम्हारी एक जोड़ी आँखें ही
अपने साथ ला सका हूँ..
उस दिन वहां से..उस कोने से मुझे ही देख रही थीं पर मैं न जा सका.. वहां तक जहाँ तुम खड़ी थीं..खुद को तो वहीँ किसी कोने में रख आया कि बाद में ले आऊंगा..पर ऐसा कुछ हुआ नहीं. और तुम्हारे बारे में क्या कहूँ न हम मुड़े न कहीं रास्ता मुड़ा अपना..
लोग मेलों में भी गुम हो कर मिलें हैं बाराहा. दास्तानों के किसी दिलचस्प से एक मोड़ पर, यूँ हमेशा के लिए भी क्या बिछड़ता है कोई..हम दुबारा मिलेंगे पुरानी किसी पहचान की ख़ातिर..
{और मेरे साथी मित्र इसे इस नामुराद मौसम का एक और 'साइड इफैक्ट 'मान सकते हैं बाकि उनकी मर्ज़ी..वैसे कल-पसरो दोपहर अपनी दिल्ली का मौसम कुछ-कुछ इस फोटो की तरह नहीं था क्या..}
तब कभी नहीं सोचा था की तुम्हे अपने पास इतना महसूस करूँगा. यह शायद आज का सच है वो शायद तब का रहा होगा.
तब हमारे पास एक-दूसरे को देख भर लेने के कई सारे - तुम न भी मानो तो कम से कम मेरे लिए तो थे ही - और आज इसकी कोई संभावना भी नहीं दिखती. फिर भी एक रूमानी से गलियारे में तुम्हारे न होने पर चले जाना और उस खालीपने को भर लेने की ज़िद जहाँ अटक-भटक सा रहा हूँ..
बातचीत..ये होती क्या है..हमारे सन्दर्भ में बार-बार उस बार से दोहराना अपने आप में कम पीड़ादायक नहीं है पर हर बार बार-बार किसी ऐसे सच के पास पहुँच चीजों को साफ़ कर लेना चाहता हूँ जिससे मैं खुद को तय्यार कर सकूँ..
कि हाँ यही वो वजह है जिसके कारन हम दोनों आज साथ नहीं हैं. और रह-रह वो सारी दलीलें-तकरीरें चुक जाती हैं जिन पर पिछली बार मान चुका था. और यहीं कहीं मैं तुम्हारे पास चला आता हूँ.
उस दिन वहां से..उस कोने से मुझे ही देख रही थीं पर मैं न जा सका.. वहां तक जहाँ तुम खड़ी थीं..खुद को तो वहीँ किसी कोने में रख आया कि बाद में ले आऊंगा..पर ऐसा कुछ हुआ नहीं. और तुम्हारे बारे में क्या कहूँ न हम मुड़े न कहीं रास्ता मुड़ा अपना..
लोग मेलों में भी गुम हो कर मिलें हैं बाराहा. दास्तानों के किसी दिलचस्प से एक मोड़ पर, यूँ हमेशा के लिए भी क्या बिछड़ता है कोई..हम दुबारा मिलेंगे पुरानी किसी पहचान की ख़ातिर..
{और मेरे साथी मित्र इसे इस नामुराद मौसम का एक और 'साइड इफैक्ट 'मान सकते हैं बाकि उनकी मर्ज़ी..वैसे कल-पसरो दोपहर अपनी दिल्ली का मौसम कुछ-कुछ इस फोटो की तरह नहीं था क्या..}
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