करनी चापरकरन
तुम अपने आपमें डूबे हुए चुपचाप - खड़े हो किताब में छपे पेड़ की तरह मौसम से बेखबर..
पृष्ठ
मुख्यपृष्ठ
यह ब्लॉग
मैंने मैं शैली अपनाई
ख़त मेरा
ख़त तुम्हारा
सत्रह सितंबर: हर साल
चुरा लाया गया एक संवाद
एक पन्ना फ़ेसबुक
जनसत्ता में..
गुम हो गए पते..
गुम हो गए पते..
इन हिन्दी में लिखे गए कैप्शनों पर कर्सर / माउस लेजाकर क्लिक कीजिये, एक दूसरी दुनिया इंतज़ार कर रही है..
इन्स्टाग्राम पर मेरी तस्वीरें
ट्वीटर पर मैं
आवाज़ें
चलते भागते सब
कुछ अक्स और
तस्वीरें पुरानी
कभी यह भी था
एक पन्ना और..
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें
मुखपृष्ठ
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
आवाज़ें..
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें